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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

24. गोलगप्पे 

इस कहानी में "आगे कुंआ पीछे खाई" मुहावरे का प्रयोग किया गया है । 

यूं तो लोगों के बड़े बड़े शौक होते हैं । लोग न जाने कैसे शौक पाल लेते हैं । वैसे हर कोई ऐसे वैसे शौक नहीं पाल सकता है , शौक पालने के लिये दिल और जेब दोनों मजबूत होनी चाहिए वरना ये शौक कंगाल बना देते हैं । आइए आज एक ऐसी रानी की कहानी सुनाते हैं जिसे गोगोलगप्पोंकआ बहुत शौक था । वैसे तो हर एक महिला को गोलगप्पे खाने का बहुत शौक होता है मगर इन रानी साहिबा के शौक के तो कहने ही क्या ? चलिए , तो कहानी शुरू करते हैं । 

 एक रानी थी जो बहुत ज्यादा तुनकमिजाज थी । जरा जरा सी बात पर तुनक जाया करती थी । और जब वो तुनकती थी तो जमीन आसमान एक कर देती थी । कहते हैं कि त्रिया हठ के आगे किसी की नहीं चलती है । और अगर ऐसी स्त्री तुनकमिजाज भी हो तो "करेला और नीम चढा" वाली कहावत लागू हो जाती है । 

उस रानी को "गोलगप्पे" बहुत पसंद थे । अगर उसके सामने 56 व्यंजन परोस दें और उनमें यदि गोलगप्पे नहीं हों तो बस, भूचाल आ जाता था । वे जब गोलगप्पे खाना शुरू कर देतीं थीं तो फिर गिनती भी नहीं थीं । बस खाती जाती , खाती जाती थी । दरबारी लोग डरते रहते थे कि कहीं इतना ना खा जायें कि ये बीमार ही पड़ जायें, तो वे भगवान से प्रार्थना करते रहते थे कि रानी साहिबा बीमार नहीं पड़ें और उनकी जान सही सलामत बनी रहे । 

एक बार रनिवास में गोलगप्पों की एक महफ़िल सजी । उस महफ़िल में भांति भांति के गोल गप्पे बनाये गये । कोई मैदा के , कोई सूजी के, कोई आटा के तो कोई मिक्स । भांति-भांति का पानी भी बनाया गया। कोई तीखा , कोई खट्टा , कोई मीठा, कोई पुदीना का, कोई धनिया का , कोई हींग का तो कोई कुछ और किसी का । गोल गप्पों में भरने के लिए मसाला भी अलग अलग प्रकार का बनाया गया। कोई आलू का, कोई छोले का, कोई पनीर का , कोई प्याज , टमाटर का , कोई भुजिया का । रनिवास में गजब का मजमा लग रहा था । गोलगप्पों , मसालों और पानी की महक पूरे महल में फैल रही थी । इस महक से ही कइयों के मुंह में पानी आ गया था । 

जब पूरी महफ़िल सज गई  तब रानी साहिबा को बुलाया गया । गोल गप्पों की महफ़िल देखकर वे पागल हो गईं । बस फिर क्या था । उन्होंने आव देखा न ताव और लगी खाने, दे दनादन , दे दनादन । कभी इस वाले गोलगप्पे में वो वाला मसाला भरकर उस वाले पानी के साथ खाती तो कभी कुछ और तरीके से खाती थी । गोलगप्पों का स्वाद भी जबरदस्त था इसलिए वे खाती चली गईं । पता नहीं कितने गोलगप्पे खाये उन्होंने ?  गिने कौन ? मरना थोड़े ही था किसी को । गिनती करते तो रानी साहिबा नाराज होती और न गिनते तो महाराज नाराज होते । क्या करती वे ? इधर कुंआ उधर खाई वाली बात हो गई थी । रानी साहिबा उन लोगों से बार बार पूछ भी रही थीं कि ज्यादा तो नहीं खा रही हूं ना मैं ? पर यह कहने की हिम्मत किसमें थी जो कह देती कि हां, आप ज्यादा खा रही हो । 

खिलाने वाली अपनी जान बचाने के लिए कहती "अभी तो हुजूर ने खाये ही कहां हैं ? अभी तो बस चखे ही हैं । खाना तो अब शुरू करेंगी हुजूर " । 

और इस जवाब पर रानी साहिबा ने खुश होकर अपना नौलखा हार गोलगप्पे वाली की ओर उछाल दिया और फिर से गोलगप्पे खाने में तल्लीन हो गई । जब पेट , आत्मा , गला,  मुंह और होंठ तृप्त हो गए तब भी मन तृप्त नहीं हुआ था । और खाने की लालसा शेष रह गई थी मन में लेकिन उन्हें लगने लगा कि अब यदि एक और खा लिया तो जितने खाये हैं वे सब बाहर आ जाएंगे , तब जाकर उन्होंने बस किया । उनके बस करते ही गोलगप्पे वाली ने राहत की सांस ली । 

इतने गोलगप्पे खाने के बाद उनकी हालत ऐसी हो गई थी कि उनसे बैठा भी नहीं रहा जाए और खड़ा भी नही रहा जाये , तो वे वहीं पर पसर गईं । उनकी यह हालत देखकर सब लोग घबरा गये । दासियां पंखा झलने लगीं । एक दासी पानी ले आई तो रानी साहिबा ने उसे झिड़क दिया " धत् पगली , अगर एक चम्मच पानी की भी गुंजाइश होती तो मैं एक गोलगप्पा और नहीं खा लेती " ? 

बेचारी दासी । रानी साहिबा की गोलगप्पों के प्रति आसक्ति देखकर गदगद हो गई । आसक्ति हो तो ऐसी । उसने रानी साहिबा के गोलगप्पा प्रेम को मन ही मन प्रणाम किया । 

वह दासी उठने को हुई कि इतने में "भचाक" की आवाज आई । सब लोग चौंके । सबने आवाज की दिशा की ओर देखा तो पता चला कि रानी साहिबा के मुंह से एक फव्वारा छूटकर सीधा गोलगप्पे वाली को जाकर लगा था । लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही एक दूसरा फव्वारा छूटा और सारे गोलगप्पों पर जाकर गिरा । फिर तो थोड़े थोड़े अंतराल पर फव्वारे छूटते रहे और कभी यहां तो कभी वहां गिरते रहे । 
रनिवास में कोहराम मच गया । सब दासियां दौड़ पड़ी । कोई वैद्य को बुलाने गई तो कोई महाराज को सूचित करने । पांच सात दासियां रानी साहिबा को उठाकर पाखाने के पास ले गई और जोर जोर से पेट दबा दबाकर "गोलगप्पे" बाहर  निकालने लगीं । उनकी कोशिश रंग लाई और गोलगप्पे बाहर आने लगे ।  जब सब "गोलगप्पे" बाहर आ गए तो उन्हें पलंग पर लिटा दिया । इतने में वैद्य जी आ गये और उन्होंने अपनी औषधि पिलानी प्रारंभ कर दी । 

पूरे सात दिन बाद वे बिस्तर से उठीं । बस, उस दिन के बाद से उन्होंने गोलगप्पों से तौबा कर ली । फिर तो गोलगप्पों का नाम भी उन्हें काटने को दौड़ता था । एक दिन मजाक मजाक में महाराज ने कह  दिया "आज तो गोलगप्पे खाने की इच्छा हो रही है " । बस , फिर क्या था , रनिवास में महाराज की ऐन्ट्री ही बंद हो गई । बेचारे महाराज । रानी की तुनकमिजाजी का शिकार हो गए । इसलिए "अति" से बचना चाहिए । शौक पालिए पर स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं । 

श्री हरि 
23.1.2023 



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2 Comments

अदिति झा

26-Jan-2023 07:53 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

26-Jan-2023 11:06 PM

धन्यवाद मैम

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